रविवार, 9 जनवरी 2011

प्याज और प्रेमिका

प्याज मेरे लिए पूर्व प्रेमिका की तरह है जो याद करो तो आती नहीं और मनाओ तो मानती नहीं. आंसू तो दोनों ही सूरत में निकलते हैं. मुश्किल यह है कि दिल बेचारा है जो हर बाद उसे याद कर के सुबकता है. कभी प्याज के बहाने तो कभी प्रेमिका के बहाने. दोनों ही मुझे प्रिये हैं. न तो प्याज को छोड़ सकता हूँ, न प्रेमिका को. समस्या यह है कि यदि प्याज छोड़ दिया तो तरकारी का रस गाढ़ा नहीं होगा और प्याज ले आया तो गाढ़ी कमाई जाएगी. फीकी सब्जी चटोरा जीभ स्वाद नहीं लेगा. स्वाद नहीं मिलेगा तो सूखी रोटी गले के नीचे उतरेगी नहीं. लिहाज़ा पेट में तौलिया लपेट के सोना पड़ेगा. प्रेमिका की माया से शरीर ने वैसे ही दगा दे दिया है! हमने तो पिछले साल से ही नए साल के लिए रेजोल्यूशन बना लिया था कि इस साल छक के खाऊंगा. पर महंगाई की देवी को हमारा रेजोल्यूशन लगता है पसंद नहीं आया.
प्रेमिका और प्याज में एक समानता है . यदि आपके पास धन है तो प्रेमिका भी आएगी और प्याज भी. मेरी लाचारी है कि मेरे पास लक्ष्मी नहीं टिकती तो रसोई में प्याज और जीवन में प्रेमिका कहाँ से टिके. दो दिन पहले एक मित्र घर आये. जनाब ने गृह प्रवेश से पहले ही प्रेमिका का हाल पूछ लिया. आँखें छलक आयीं, लेकिन हमने उसे अभी व्यर्थ बहने से रोका ही था कि जनाब फरमाइश कर बैठे कि प्याज के पकोड़े खाने की इच्छा है. आपके हाथ के बने पकोड़े खाने का अलग ही आनंद है. ह्रदय जोर से धड़का और कलेजा बैठता गया. दो दो सदमे झेलने का न तो समय रहा और न ही शरीर. क्षण में ही धन्वन्तरी सी एकहरी काया सूखे पत्ते की मानिंद कांपने लगी. लगा जैसे शरीर का पूरा खून निचुड़ गया. अतीत एक बार फिर हावी हो गया...कभी प्रेमिका का चेहरा आँखों के आगे घूम कर जैसे मुह चिढ़ाता तो कभी प्याज. मुह से शब्द नहीं फूट रहे थे. मित्र को झेलना भारी पड़ रहा था. प्रेमिका के बारे में चलो कह भी देता कि उसने मुझे छोड़ किसी और के साथ घर बसा लिया. लेकिन इस नामुराद प्याज का क्या करूँ? कैसे कहूँ कि मैं वैष्णव हो गया हूँ. कारण जो भी हो. मैंने पाला बदल लिया है. अब तो जहाँ प्याज होता है मैं वहाँ नहीं होता हूँ. लाचारी में अगर बाज़ार का रुख करना भी पड़ा तो प्याज को देखकर असहज हो जाता हूँ. मन उसे देख कर ललचाता है...और आह भरता है...काश! मेरे पास लक्ष्मी होती तो दोनों को नहीं खोता!

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