बुधवार, 8 अक्तूबर 2014

मैं भैरव हूं-2

वर्ष 2009। नवरात्र। मैं एक मंत्र पर प्रयोग कर रहा था। मंत्र सदैव ही मुझे आकर्षित करते हैं। नवरात्र के आखिरी दिन मैं मेडिटेशन कर रहा था। मुझे सागर के किनारे एक पहाड़ी दृश्‍य दिखा। मैं एक अबोध शिशु के रूप में दिखा। ऊंचे चट्टान पर बैठे एक नंग धड़ंग व्‍यक्ति ने मुझे गोद में ले रखा था। वह शख्‍स कोई मामूली इनसान नहीं था। इस बात का अहसास मुझे चट्टान के नीचे करबद्ध मुद्रा में खड़ी भीड़ से हुआ। मुझे नहीं मालूम जिनकी गोद में मैं था वह कौन थे। यह वह दौर था जब मैं भयंकर पीठ और कमर दर्द से परेशान था। मुझे याद है कि 6-8 माह तक मैं पेट के बल सोया, क्‍योंकि पीठ के बल सोता तो उठ नहीं पाता था और पूरी पीठ सुन्‍न हो जाया करती थी। इसी तरह करवट लेकर भी नहीं सो सकता था। दफ्तर के सहकर्मी मुझे मोटरसाइकिल पर बैठा कर धीरे-धीरे दफ्तर ले जाते और देर रात को घर छोड़ने आते थे। इस सेवाभाव और प्रेम के लिए मैं उनका हृदय से आभारी हूं।
मुझे लगा जैसे यह मेरी कल्‍पना है। सुबह हो चुकी थी। इसलिए सोने की कोशिश करने लगा। मैं पेट के बल लेटा तो नींद नहीं आई। सोचा मेडिटेशन करते करते ही सो जाऊंगा। मुझे यही उचित लगा। ध्‍यान की अवस्‍था में मुझे महसूस हुआ कि वही बुजुर्ग सज्‍जन मेरी पीठ सहला रहे हैं। मेरे पैर दबा रहे हैं। मेरे सिर पर हाथ फिरा रहे हैं। उनके साथ एक और कोई युवक था जो 30-32 साल का था। वह मेरे क़रीब आने के लिए अवसर की तलाश में था, लेकिन बुजुर्ग सज्‍जन की मौजूदगी के कारण वह लाचार था। ख़ैर, काफी देर तक सज्‍जन मुझे पितृवत स्‍नेह से सुलाने का प्रयास करते रहे। फिर मुझे कब नींद आ गई, पता नहीं चला। उसके एक दो दिन बाद मुझे अहसास हुआ कि मेरा दर्द गायब है! इसमें कोई संशय नहीं कि उन्‍होंने मेरी हीलिंग की। मुझे दर्द से निजात दिलाया।
इस घटना के तीन साल हो चुके। वर्ष 2012-13 की बात है। मेरी एक मित्र को जब इस घटना का पता चला तो उन्‍होंने एक संत की तस्‍वीर मुझे ई-मेल से भेजी। मैंने तस्‍वीरें देखीं, लेकिन पहचान नहीं पाया। इस तरह कुछ माह और बीत गए।
एक दिन की बात है। मैं दफ्तर में काम कर रहा था। काम करते समय अचानक मुझे वही दृश्‍य दिखा। उसी नंग धड़ंग शख्‍स की गोद में अबोध शिशु की तरह लेटा हुआ। मुझे सहसा ख्‍़याल आया कि मेरी मित्र ने जो तस्‍वीरें भेजी थीं उसे देखना चाहिए। मैंने तत्‍काल ई-मेल पर उन तस्‍वीरों को ढूंढ़ा। देखा तो आश्‍यर्च की सीमा न रही। वही कद-काठी। वही चेहरा। वही महापुरुष। पता चला वह अक्‍कलकोट महाराज अर्थात् स्‍वामी समर्थ महाराज के नाम से जाने जाते हैं। एक अनुत्‍तरित प्रश्‍न का उत्‍तर मुझे तीन चार साल बाद मिला।
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